मैं रूद्र का अनुचर !
गति में, स्थिति में , सब में, सब पर,
प्रबल , सबल , तप में नित तत्पर ,
जन्म, मृत्यु ,बाहर, अंतर में ,
प्रेम , द्वेष, आनंद, क्लेश में ,
मैं रक्षित , मैं रक्षक , मैं समता , मैं अंतर!
मैं रूद्र का अनुचर !
मेरे गर्जन से सहज ये , दिग्गज डोलते हैं,
दिगपाल मेरे बल से निज बल को तोलते हैं ,
शब्द मेरे झंझा का अनुनाद हैं ,
मेरे अस्तित्व से निर्जीव होते , पीड़ा और विषाद हैं
मेरी फुंफकार से भयभीत हैं विषधर !
मैं रूद्र का अनुचर !
श्रम बिंदु मेरे करते हैं बहुल , स्वल्प को ,
मेरे संकल्प पोषते हैं, श्रष्टा के संकल्प को ,
विचार मेरे कभी अग्नि , तो कभी वज्र हैं ,
कुत्सित को ध्वंश करते, रूद्र से ये उग्र हैं ,
दृष्टि मेरी करती, सुन्दरता को सुन्दर !
मैं रूद्र का अनुचर !
चरण चिह्न हैं मेरे, जग पालक की छाती पर ,
कुलिश कुठार रहा मेरा ही , अगणित गर्वित मस्तक पर ,
मैं देता जलन अग्नि को , नीर को शीतलता ,
आकाश का अनंत मैं , विद्युत् की चपलता ,
मैं ही वामन और विराट , भंगित और निरंतर !
मैं रूद्र का अनुचर !!