अंधकार को हटा कौन , चिर ज्योति को जला गया ...
इस शुष्क और मृत मरुथल में, अमृत का सोता बहा गया ...
वर्षों से भटकते इस मन को, राह सनातन दिखा गया ...
कोई मुझको प्रेम सिखा गया .....!
बाधा अजेय जो लगती थीं, उन्हें जीवन क्रीडा बना गया ...
बल और बुद्धि जो थकती थीं, उन्हें संजीवनी कोई पिला गया ...
संकुचित ह्रदय जो था मेरा, उसको विस्तृत वह बना गया ...
कोई मुझको प्रेम सिखा गया ......!
जो कर्म अनिश्चित लगते थे, कोई निश्चय उनमें मिला गया ....
जो प्रश्न गूढ़ से लगते थे, उत्तर उनका कोई बता गया ...
जो ख़ुशी दूर ही दिखती थी, कोई उसको मन में बिठा गया ...
कोई मुझको प्रेम सिखा गया ....!
अब लहरों सा उछ्रिन्खल हूँ मैं, हिम सा शुद्ध व शीतल हूँ मैं ...
द्वेष और कटुता हैं छूटे, आनंद खजाने मैंने लूटे ....
पूर्ण समर्पण खुद का खुद को, चुपके से कोई करा गया ...
कोई मुझको प्रेम सिखा गया ....!
कोई मुझको प्रेम सिखा गया ....!